नक्सलवाद (21वीं सदी की सामाजिक समस्या)

 

संजय चंद्राकर1, चम्मन लाल2

1सहा.प्राध्यापक समाजशास्त्र विभाग, शा.जे.यो. छत्तीसगढ़ महा., रायपुर (छ.ग.)

2छात्र, समाज कार्य विभाग, शा.जे.यो. छत्तीसगढ़ महा., रायपुर (छ.ग.)

 

सारांश

वर्तमान में भारतवर्ष अनेक प्रकार की सामाजिक समस्याओं से जूझ रहा है। जिनमें जातिवाद, सम्प्रदायवाद, भ्रष्टाचार, मद्यपान, नक्सलवाद आदि ऐसी ही महत्वपूर्ण सामाजिक समस्याएं हैं। प्रस्तुत अध्ययन नक्सलवाद पर ही आधारित है यह भारत के आठ राज्यों में 26 जिलों को बुरी तरह प्रभावित किया हुआ है। इसके निदान के लिए राज्य अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं किंतु यहां आवश्यक है कि भारत सरकार राज्य सरकारों के साथ पूर्ण समन्वय के साथ विविध तरीकों का प्रयोग करते हुए इसका निदान ढूंढने का प्रयास करे।

 

प्रस्तावना

समस्याएं और समाधान एक दूसरे के पूरक हैं। मानव की आवश्यकताएं असीमित हैं चाहे वे व्यक्तिगत हों, पारिवारिक हों, क्षेत्रीय हांे, राष्ट्रीय अथवा अन्य! इन समस्याओं को मनुष्य अपने पक्ष में समाधान हेतु तरह-तरह के तरीकों को अंजाम देता रहा है। आज हम 21वीं सदी में जी रहे हैं और  इस सदी में भी हमने अपनी विभिन्न आवश्यकताओं तथा उद्देश्यों की पुर्ति के लिए अनेक साधनों का उपयोग प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप में किया है। उससे अनेक क्षेत्रों में तो हमें उपलब्धियां हासिल हुई है तथा इसके विपरीत कई ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है जो हमारे लिये एक विकट समस्या का रूप धारण कर चुकी है। नक्सलवाद तथा आंतकवाद हमारे लिए ऐसी ही समस्या है।

नक्सलवाद एक नजर में

नक्सलवाद का प्रारंभ 2 मार्च 1967 को गरीब किसानों को जमींदारों के अत्याचार से बचाने के लिए समाधान के रूप में प्रारंभ हुआ था, लेकिन कालान्तर में यह राष्ट्र के लिए गंभीर समस्या बनकर रह गया है, आज नक्सली भारत के सुरक्षाकर्मीयों, शीर्ष नेताओं एवं ग्रामीणों को दिन-प्रतिदिन मौत के घाट उतार रहे हैं तथा आतंक फैला रहे हैं। यह वर्तमान में भारत की प्रमुख सामाजिक समस्या है। जिसका निदान आवश्यक है।

 

इतिहास

नक्सलवाद के इतिहास पर यदि हम गौर करें तो हमें पता चलता है कि नक्सलवाद स्वतंत्रता पश्चात उत्पन्न हुई एक समस्या है जो आज एक विकट रूप में हमारे सामने उपस्थित है।

  नक्सलवाद उदय के प्रमुख कारण

अ. 2मार्च 1967 को पश्चिम बंगाल के छोटे से गांव नक्सलवाड़ी में आदिवासी किसानों को उनके कब्जे की जमीन का न मिल पाने के कारण।

 ब. देश में कम्यूनिस्ट क्रांति का आना जो कि माओवादी नेता कनु के द्वारा लाया गया था।

 स. वामपंथियों द्वारा नक्सलवाद के लिए सैद्धांतिक सहमति प्रदान करना।

भारत में नक्सल प्रभावित क्षेत्र

भारत में नक्सलवाद से 60 जिले प्रमुख रूप से प्रभावित हंै जिनमें उड़ीसा में 9, झारखंड में 14, बिहार में 7, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़ में 10, मध्यप्रदेश में 8, महाराष्ट्र में 2 तथा पश्चिम बंगाल में एक जिला (हावड़ा) प्रमुख रूप से नक्सलवाद तथा उग्रवाद से प्रभावित है।

 नक्सलवाद संबंधी कुछ  प्रमुख भूलें

1.      नक्सलवाड़ी विद्रोह को वर्ग-संघर्ष मानकर छोड़ देना।

2.      नक्सलियों की गुटबाजी के बावजूद उन्हें समाप्त नहीं कर पाना।

3.      जब वे संगठित हो रहे थे तब उन्हें रोकने सरकारी प्रयास पर्याप्त नहीं हुए।

4.      तेलगू देशम् के संस्थापक ने नक्सलियों को सच्चा देशभक्त बताया, तथा पुलिस को उनके विरूद्ध कार्यवाही करने से रोका गया।

5.      चुनाव में नक्सलियों से मदद मांगना।

6.      जांच संबंधी सभी रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल देना।

7.      छत्तीसगढ़ में 76 हत्याओं के बाद भी वार्ता पेशकश करने में असफल रहना।

8.      पुलिस को सक्षम बनाने के लिए पैसे तो आए, परंतु खर्च ही नहीं कर पाना।

 

नक्सलवाद बढ़ने के प्रमुख कारण

1.      जहानाबाद जेल तोड़े जाने पर भी चुप रही सरकार।

2.      सलवा जूडूम के कारण। 

3.      जवानों की हत्या दर हत्या से भी फर्क न पड़ा।

4.      अगवा पुलिस अफसर को युद्ध बंदी बताने पर भी कुछ नहीं किया।

5.      शरीर में बम प्लांट जैसे कार्य पर शांत रहना।

6.      सेना का प्रयोग ना करना।

 

नक्सलियों से मुकाबला न कर पाने के कारण 

1.      नक्सलियों को पूरे इलाके के चप्पे-चप्पे की जानकारी होना।

2.      सुरक्षा बलों के पास इस कार्य के लिए प्रशिक्षण की कमी।

3.      नक्सलियों द्वारा अचानक छुपकर वार करने के कारण।

4.      सरकार द्वारा पक्ष लेना, कि वे हमारे ही लोग हैं।

5.      नक्सली पहचाने नहीं जाते।

6.      नक्सलियों को ग्रामीणों का साथ एवं सहयोग प्राप्त होना।

7.      सुरक्षा बलों के पास अत्याधुनिक उपकरणों का ना होना।

 

नक्सलवाद से उत्पन्न समस्याएं

वर्ष 1967 से प्रारंभ नक्सली गतिविधियां तथा उनसे प्रभावित क्षेत्रों में निम्नलिखित समस्याएं दिखाई दे रही है।

1.      देश के विकास में बाधक

2.      देश की सुरक्षा को खतरा

3.      आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा को खतरा

4.      आर्थिक विकास में बाधक

5.      सामाजिक विकास में बाधक

6.      राजनैतिक निर्णय लेने में कठिनाई

7.      राष्ट्रीय एकता को खतरा

8.      प्रशासन तंत्र को खतरा

9.      आमजन में भय बने रहना

 

नक्सलवाद की समस्या के लिए समाधान के उपाय

नक्सली समस्या के समाधान के लिए निम्नलिखित तरीके प्रभावी हो रहे हैं:-

1.      नक्सलियों में व्याप्त कुंठा को दूर करके।

2.      नक्सलियों की मनोवृत्ति में परिवर्तन लाकर।

3.      सरकार द्वारा समझौते संबंधी पहल करके।

4.      नक्सलियों की समस्याओं का शांति पूर्ण समाधान करके।

5.      नक्सलियों के साथ बैठकर समस्या निदान हेतु प्रयास करना।

6.      सेना को पूर्ण अधिकार प्रदान कर समस्या निदान हेतु प्रयास करना।

7.      केंद्र-राज्यों के बीच बेहतर तालमेल से।

8.      सुरक्षा बलों को तकनीकी रूप से उन्नत करके।

 निष्कर्ष

अन्ततः निष्कर्ष में कहना होगा कि नक्सली आतंक, भय, हत्या लूटमार के रास्ते पर चलते रहेंगे, तो समस्या और विकराल रूप धारण करती जायेगी। किसी भी समस्या का समाधान सिर्फ बातचीत के माध्यम से ही निकाला जा सकता है दृढ़ इच्छा-शक्ति , ईमानदार पहल ही इस समस्या के समाधान के प्रमुख अस्त्र हो सकते हैं। बन्दूक की नोक पर खून बहाना समस्या को समस्या ही बनाए रखेगा। ऐसा व्यवहार जहां दोनों पक्ष आमने-सामने बैठकर समस्या को हल करने का प्रयास करेंगे, तो निश्चित ही यह समस्या समापन के रास्ते पर होगी। पक्षपातपूर्ण रवैया, राजनीतिक दलों द्वारा श्रेय लेने की होड़,वारदात होने पर घड़ियालू आंसू बहाना , झूठे बयानों को दर किनार कर नक्सलियों को राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ने ठोस प्रयास करने होंगे या फिर सेना के माध्यम से प्रभावित क्षेत्रों में समस्या समाधान के प्रयास ढूंढने होंगे।

 

संदर्भ ग्रंथ

1.     लुईस एवं प्रकाशः- जनशक्ति: मध्यप्रदेश, बिहार में नक्सलवाड़ी आंदोलन ;2006द्ध

2.     मनोज एवं श्रीवास्तव:- नक्सलवादः कारण, समस्याएं एवं समाधान ;2011द्ध

3ण्   ैतपअंेजंअंए डंदवररू. छंगंस उवअमउमदज ंदक ेजंजम चवूमत ूपजी ेचमबपंस तममितमदबम व िव्तपेें ;2006द्ध        

4ण्   छंजपवदंस ेमबनतपजल ैमतपमेरू. त्पेम व िदंगंसपेउ हसवइंस ेजतंजपुपब ंतबीपजमबजनतमए मबवदवउपब बवदजवनते पदवितउंजपवद ेमबनतपजल पउचमतंजपअमे ;2005द्ध

5. प्रतियोगिता दर्पण अक्टूबर 2013 पेज क्रं. 514 से 516

 

Received on 05.02.2014

Modified on 23.02.2014

Accepted on 06.03.2014

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Research J. Humanities and Social Sciences. 5(1): January-March, 2014, 56-59